Home / Uncategorized / हालात ने बनाया मुझे पढ़ी-लिखी गवार
इस ज़िन्दगी में मैंने हर तरह के गुनहगार देखे है
पढ़े लिखे गवार और अनपढ़ समझदार देखे है
दान करने वाले का सर हमेशा ऊपर रहता है तो कन्यादान करने वाले का सर क्यों झुका होता है? अपने माँ-बाप से हमेशा सुना कि बेटियाँ परया धन होती हैं और ससुराल में सुना ये तो पराये घर से आयी हैं | तो फिर कौन सा घर है जिसे हम अपना कह सकते है? जब शादी होकर ससुराल आयी तो वैसे ही नए लोग, नयी दुनिया के बीच डर और झिझक थी |
सोचा ऐसा कोई काम नहीं करुँगी जिससे मैं अपने माँ-बाप का सर नीचे करुँ | अपने सास-ससुर, अपने पति सबकी हर बात को सर आँखों पर रखना मैंने अपना कर्तव्य बना लिया था |
और मेरी किस्मत देखें – मुझे पति ऐसा मिला जो अपनी माँ के आगे गलत को गलत नहीं कह सकता था तो सही को सही कहने की बात ही नहीं आती | सास की हर छोटी से छोटी बात में दखलअंदाज़ी, हमारी निजी ज़िन्दगी तो कुछ थी ही नहीं | सब पब्लिक था!
सास का हर बात पर ताने मारना, पति का उस पर कुछ ना बोल पाना | हमेशा मेरी उम्मीदों पर खरे उतरते थे मेरे पति ये बोल कर – मम्मी का ये मतलब नहीं होगा | तुम बात को गलत ले रही हो | इन सबके बीच इतनी दब गयी कि मैंने पढ़ी लिखी होकर भी वो सब किया जो एक गवार भी नहीं करता |
सास हर समय बोलती अब अपना परिवार बढ़ाओ और लड़का हो तो ज़िन्दगी धन्य | लड़कियों का बोझ उठाना आसान नहीं | मैं बोलती – मम्मी जी, लड़का या लड़की होना किसी के हाथ में तो नहीं है- उस पर मेरी सास ने ऐसा जवाब दिया कि मैं हक्की-बक्की रह गयी | आजकल बेटा होना एक औरत के हाथ में ही होता है |
एक दिन सास आकर बोली मैंने हमारे फैमिली पंडित से पूछा हैं उन्होंने कहा हैं कविता को 16 वीरवार के व्रत ऱखवाओ तो घर के आँगन में किलकारी गूंजेगी और वो भी लड़के की | और मैं कुछ ना बोल पायी और ऐसा करने से मान गयी |
ऐसा करते करते थोड़ा समय गुजरा और व्रत पूरे हो गए | एक दिन सास मेरे पास आयी और बोली ये खा | और इस गोली को रोज खाना है | फरीदाबाद वाली मल्होत्रा आंटी ने भिजवाई हैं इसे 3 महीने लगातार खाते ही तू प्रेग्नेंट हो जाएगी | मैंने इस बार अपने पति को ये बात बतानी सही समझी | तो उन्होंने कहा “खा लो, माँ का दिल रखने के लिए, वो क्यों तुम्हारे बारे में गलत सोचेगी”| मेरे हाथ में वो एक गौ मूत्र से बनी गोली और ढेर सारी हताशा थी | और मैंने वो भी कर दिया | 3 महीने तक लगातार गोली खायी | अभी 3 महीने पूरे भी नहीं हुए थे कि ज़िंदगी का व्यंग्य देखिये मैं प्रेग्नेंट हो गयी | और सास को मौका मिला ये बोलने कि वो सही थी |
तीन महीने भी नहीं हुए थे कि मेरी सास मुझे डॉक्टर के पास ले गयी |
जैसे ही मैं चेक-अप करवा कर कमरे से बाहर निकली, तो मैंने डॉक्टर को कहते सुना “जय माता दी” | जय माता दी का मतलब था मुझे लड़की होगी | और जय श्री कृष्णा मतलब लड़का | उस पर मेरी सास ने बोला हमें ये बच्चा नहीं चाहिए | एबॉर्शन करवाना है | मेरे पति बोले “पर माँ ” तो सास हाथ को झटकते हुए बोली “तू चुप कर, और बाहर जा, औरतो की बातों में मत बोला कर | और उसी समय डॉक्टर ने सारे प्रोसीजर कर एक किलकारी को दबा दिया | इसके बाद भी 1 बार फिर यही हुआ मेरे साथ | मैं तो कभी ना बोल पाती थी और मेरे पति ने भी बोलने का साहस ना किया |
ना जाने कितने ही टोटके, तांत्रिको के सुझाव, अप्रशिक्षित डॉक्टरों के जुल्म और पंडितो की सोच ने हमारे घर में जगह बना ली | मैं दिन रात रोती और सोचती इतना सब कुछ किसके लिए “सिर्फ एक बेटा पाने के लिए “|
पता नहीं भगवान् मेरी कब सुनेगा | एक दिन मेरी तबियत खराब हो गयी तो मेरी सास मुझे डॉक्टर के पास ले गयी | डॉक्टर ने कहा आपकी बहु प्रेग्नेंट हैं | और इस बार मैं एबॉर्शन नहीं कर सकती क्योंकि दिन ऊपर हो गए और अगर मैंने ऐसा किया तो माँ की जान को खतरा हो सकता है | और मेरी सास कुछ ना कर पायी |
भगवान ने मेरी सुन ली और मुझे एक नन्ही परी हुई |
उसी दिन मैंने सोच लिया था कि इसे मैं निडर बनाउंगी और इसके दो घर होंगे | एक मेरा और एक इसका ससुराल |
चित्र स्त्रोत -PInterest,Time, The logical Indian, acesnsion, youtube
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